
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने बताया कि आठ वर्ष पूर्व हरियाणा की तत्कालीन भूपेंद्र हुड्डा सरकार द्वारा भी जून, 2014 और जुलाई, 2014 में तब प्रदेश में तैनात कच्चे और अनुबंध आदि आधार पर विभिन्न विभागों में तैनात ग्रुप बी, सी और डी वर्ग के सैंकड़ों कर्मचारियों को सरकारी सेवा में पक्का करने हेतु विभिन्न नीतियां बनायीं गयी थी परन्तु 31 मई 2018 को पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एक डिवीजन बेंच, जिसमें जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल शामिल थे, ने “योगेश त्यागी बनाम हरियाणा सरकार” नामक केस के फैसला में उपरोक्त नियमितीकरण नीतियों के अंतर्गत पक्के किये गए सरकारी कर्मचारियों को गहरा झटका देते हुए इस आधार पर उन नीतियों को रद्द कर दिया था कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के अप्रैल, 2006 के एक संवेधानिक बेंच के निर्णय (सचिव, कर्नाटक सरकार बनाम उमा देवी) के अनुसार कच्चे कर्मचारियों को इस प्रकार पिछले दरवाज़े से नियमित करना सर्वथा असंवेधानिक है एवं देश में कोई भी सरकार ऐसा कच्चे कर्मचारियों का सरकारी सेवा में नियमितीकरण नहीं कर सकती. हालाकि हाई कोर्ट द्वारा हरियाणा राज्य के ऐसे कर्मचारियों को छह माह तक उनकी सरकारी सेवा में बने रहने के लिए अनुमति दे दी थी एवं साथ साथ हरियाणा सरकार को निर्देश दिया था कि इस पदों पर नियमित भर्ती प्रारंभ करे हालांकि उपरोक्त नीतियों के रद्द होने के फलस्वरूप सरकार नौकरी से हटाये जा रहे कर्मचारियों को चयन प्रक्रिया में कुछ हद तक वरीयता प्रदान की जा सकती है .