चंडीगढ़
चंडीगढ़ प्रेस क्लब में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पत्रकारों से बातचीत करते हुए राजिंदर सिंह राणा और एडवोकेट हरसिमरन सिंह ने कहा कि सुखपाल सिंह खैरा, ताज़ा हलफनामे अनुसार अपनी जायदाद ओर आमदनी के हिसाब से ऐशो आराम भरी जिंदगी व्यतीत कर रहें हैं. जो की खेतीवाली जमीन उसकी पत्नी तथा बेटे की जायदाद के समेत ओर किराये की आमदनी से नहीँ चल सकती।
उनके रहन सहन ओर पैसे के स्रोत पर बार वार सवाल उठाये गये हैं। जिसकी इस्तेमाल से वही जीवन शैली बनाई रखी जा सकती हैं, जिसमे लक्सरी कारें, महंगी घड़ियां, विदेशी परफ्यूम, जूते और वाइन शामिल हैं। उनके पास गैरकानूनी कारोबार के कई मॉडल हैं, जिनमे से दो मॉडल के बारे मे विस्तार से बात करें तो उनका गैरकानूनी कारोबार का पहला मॉडल पंजाब से संबंधित सवेन्दनशील मुद्दे को लेकर मीडिया, सोशल मीडिया, खबरों मे हलचल पैदा करना हैं। ऐसे मुद्दे उठाने के पीछे मुख्य उद्देश्य निर्णायक नतीजों पर पहुंचना नहीँ है, बल्कि दुनिया भर के प्रवासी श्रोताओं क़ो भर्मित करना ओर पैसे इकठे करना हैं। उन्होंने आगे कहा कि सुखपाल खैरा ने 2019 की लोकसभा चुनाव मे बीबी खालड़ा के नाम को इस्तेमाल किया और बीबी खालड़ा को बिना फंड के चुनाव लडने के लिए छोड़ दिया और उनके नाम से भारी रकम इकठा कर ली। जो सुखपाल खैरा के एजेंटों द्वारा उनके नाम पर विदेश मे इकठा की गयी थी। विदेशी धरती पर जिनका यह खास पंजाब में खैरा द्वारा उठाये गए मुद्दे को आगे बढ़ाने और पंजाबी की बेहतरी के नाम पर पंजाबी लोगों से पैसे जमा करके सुखपाल खैरा द्वारा उठाये गए मुद्दों को समर्थन देना है। फिर यह पैसा गैर कानूनी तरीके से भारत पहुंचाया जाता है। जिसे असल मे मनी लांड्रिंग के नाम से जाना जाता है। ई डी वाला केस भी इसका ही नतीजा हैं।
राजिंदर सिंह राणा ने आगे कहा कि इसी तरह से 2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव मे प्रोफेसर दविंदरपाल सिंह भुललर के नाम पर पूरा पैसे इकठा करके विदेशो मे बसे पंजाबी लोगों की धार्मिक भावनाओं क़ो मुद्दा बनाया गया। जबकि चुनावों में चार महीने बीत चुके हैं लेकिन दविंदर सिंह भुललर का कोई जिक्र एक बार भी खैरा की तरफ़ से नहीं किया गया। ऐसा ही कुछ किसान आंदोलन तथा नवरीत सिंह डिबडिब्बा की मौत पर किया गया था। जबकि नवरीत सिंह के माता पिता ने अपने आप को किसानों आंदोलन की मुख्य स्टेज पर नवरीत के दादा ( जिन्होंने भूलथ मे खैरा के लिए प्रचार किया था ) खुले आम अपने आप क़ो अलग कर लिया था। लेकिन खैरा ने वितीय और अपने आप को आगे रखने के मकसद से इसे इस्तेमाल करना जारी रखा।
इस वक़्त वो वर्जिन्दर सिंह परवाना का नाम इस्तेमाल कर रहा हैं, जो उस विचार का खुला समर्थक हैं जो पंजाब ओर भारत की एकता के विरुद्ध हैं। हर कोई जानता है कि वर्जिन्दर सिंह की जो भी राहत मिलनी हैं, वो अदालत के माध्यम से ही मिलनी हैं, पर सुखपाल सिंह खैरा की तरफ़ से इस मुद्दे पर की गयी प्रेस कॉन्फ्रेंस का मकसद क्या था, क्या पंजाब क़ो इस मुद्दे पर जागरूक करना था ? क्या सच मे यह विश्वास करने योग्य हैं की बरजिंदर सिंह बेकसूर हैं और उसके परिवार की मदद कर रहा हैं?. सवाल का जवाब वही है जो बीबी खालड़ा, नवरीत सिंह ओर प्रोफेसर दविंदरपाल भुललर के बारे मे दिया गया था। मतलब इसमें से पैसा कमाना न की किसी करना। केवल पैसा कमाना हैं। इस मुद्दे पर अपना स्टैंड स्पष्ट करने के लिए पंजाब प्रदेश कांग्रेस प्रधान क़ो पत्र लिखा गया हैं कि या तो खैरा कांग्रेस पार्टी की विचारधारा के साथ हैं, जिसके वो विधायक हैं या फिर उस विचारधारा के साथ हैं जो देश की एकता के विरुद्ध हैं क्यूंकि दोनों इकठे नहीँ रह सकते।
उन्होंने आगे कहा कि खैरा के गैरकानूनी कारोबार का दूसरा मॉडल का उल्लेख किया जाए तो इसे मुर्दो का कफ़न खाना कहा जाएगा। हमारे देश के विभाजन के वक़्त लोग पाकिस्तान से भारत चले गए थे और ओर उनको उस समय की नीति अनुसार जायदाद अलॉट की गयी थी। अब खैरा तथा इस भूमाफिया गिरोह की टीम क्या करती है कि भारत के विभाजन के बाद दंगों में मारे गये लोगों की पहचान कर और एक ही नाम और पिता के नाम वाले लोगों को ढूंढ कर मरे हुए ल9गों को जिंदा दिखाना है। फिर उनको जायदाद अलॉट करवा दी जाती है।जिसके बाद वो जायदाद सुखपाल सिंह खैरा और उसके आदमियों के नाम ट्रांसफर करवा दी जाती है।
जिला जालंधर के गांव कंडियाली के हद बस्त नम्बर. 55 खसरा नम्बर 104 एक जायदाद खैरा के दोगले चेहरे का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। जबकि ये प्रॉपर्टी केंद्र सरकार की हैं ओर 1965-66, 1970-71, 1975-76 के जमीनी रिकॉर्ड के अनुसार भाखड़ा- नंगल प्रोजेक्ट के लिए रखी गयी थी। लेकिन ये लैंड रिकॉर्ड 2015-16 मे सुखपाल सिंह खैरा पुत्र सुखज़िन्दर सिँह के नाम तब्दील हो गयी। गैरकानूनी तरीकों की कड़ी, जिसमे राजनैतिक शक्ति का इस्तेमाल शामिल हैं। उपमंडल मजिस्ट्रेट जालंधर की तरफ़ से जमींन की धोखाधड़ी को देखते हुए अल्लोत्मेंट रद्द करने की रिपोर्ट तैयार की गयी थी। लेकिन कोई कार्यवाही नही की गयी। क्योंकि सुखपाल की सियासी पहुँच थी, जो की पंजाब मे आप पार्टी की सरकार बनते ही खत्म हो गयी है।