चंडीगढ़
सोमवार 6 मार्च को होलिका दहन होगा। 7 मार्च मंगलवार को धुलंडी अर्थात् रंग खेलने का पर्व मनाया जाएगा। होलिका दहन फाल्गुन शुक्ल की प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा को भद्रा रहित समय में करना श्रेष्ठ माना गया है। लेकिन इस बार भद्रा अद्र्ध रात्रि के बाद यानी निशीथ काल से आगे चली जाती है तो ज्योतिष शास्त्र में भद्रा में ही होलिका दहन करने की अनुमति दी गई है। पिछले साल भी होलिका दहन भद्रा में ही हुआ था। ज्योतिषियों का कहना है कि होलिका दहन सोमवार को प्रदोष युक्त गोधूलि बेला में शाम 6.26 से 6.38 यानी 12 मिनट का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त रहेगा। इस समय में होलिका दहन नहीं किया जाता है तो आगे प्रदोष बेला जो शाम 6.26 से रात 8.55 बजे तक भी किया जा सकेगा। सर्वश्रेष्ठ तो 12 मिनट इसके बाद 2 घंटे 17 मिनट का समय श्रेष्ठ रहेगा। होलिका दहन के समय दो ग्रह बृहस्पति व शनि तो स्व राशि रहेंगे। बृहस्पति ग्रह मीन राशि व शनि देव कुंभ राशि में विराजमान होंगे। वहीं सुख समृद्धि व वैभव के कारक ग्रह शुक्रदेव अपनी उच्च राशि मीन में बृहस्पति के साथ विराजमान होंगे और कुंभ राशि में सूर्य, बुध व शनि का त्रिग्रही योग भी बनेगा, जिसमें बुद्धादित्य योग भी श्रेष्ठ फलदायक होगा। इस बार की होली सुख समृद्धि तथा वैभव वाली होगी।
प्रदोष बेला में 2.17 घंटे में शाम 6.26 से रात 8.55 बजे तक श्रेष्ठ मुहूर्त रहेगा धर्म सिंधु का भी निर्देश, भद्रा शाम 4.18 बजे से फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी सोमवार को शाम 4.18 बजे पूर्णिमा प्रारंभ होगी, जो कि अगले दिन मंगलवार को शाम 6.10 बजे तक रहेगी। इसलिए होली सोमवार को ही मनाई जाएगी। इसमें कोई संशय नहीं है। किंतु इस दिन भद्रा शाम 4.18 बजे से तडक़े 5.14 तक रहेगी।
सर्वमान्य ग्रंथ धर्म सिंधु का निर्देश है कि होलिका दहन में भद्रा को टाला जाता है, किंतु भद्रा का समय यदि निशीथ यानी अद्र्ध रात्रि के बाद चला जाता है तो होलिका दहन भद्रा के मुख को छोडक़र भद्रा पुच्छकाल या प्रदोषकाल में करना चाहिए। इस बार भद्रा शाम 4.18 बजे से अंत रात्रि 5.14 बजे तक है। जिसमें भद्रा निशीथ समय रात के 12:38 बजे से आगे चली गयी है।