चण्डीगढ़
संसार में आज का इन्सान अज्ञानता के कारण स्वयं को शरीर तक ही सीमित रखे हुए है जिसकारण वह स्वयं को श्रेष्ठ और दूसरों को नीचा समझ कर अपनी जीवन यात्रा तय कर रहा है जिससे वह स्वयं भी दुखी होता है और दूसरों को भी दुख पहुंचाने का कार्य करता है, लेकिन जो इन्सान वर्तमान सत्गुरू माता सुदीक्षा जी महाराज की शरण में आकर ब्रहमज्ञान प्राप्त कर लेता है तो उसे यह स्पष्ट हो जाता है कि मैं शरीर नहीं हूं यह शरीर तो आत्मा का एक पात्र है, ये उद्गार देहली से आए केन्द्रीय प्रचारक श्री विवेक मौजी जी ने सन्त निरंकारी सत्संग भवन सेक्टर 30 में हज़ारों की संख्या में उपस्थिति श्रोताओं को सम्बाधित करते हुए व्यक्त किए ।
श्री मौजी ने इसे स्पष्ट करते हुए बताया कि जिसप्रकार हमारे से कोई पीने का पानी मांगे तो हम उसे किसी गिलास आदि में ही पानी लाकर देते हैं, यदि वह यह कहने लगे कि मैनें तो पानी मांगा था और आपने गिलास क्यों दे दिया तो इसका हम सबकी ओर से यही उत्तर होगा है कि पानी तो किसी गिलास या किसी पात्र में ही लाकर दिया जा सकता है । जिसप्रकार पानी के लिए गिलास एक पात्र का कार्य करता है ठीक उसी प्रकार हर जीव के लिए उसका शरीर ही उसकी आत्मा का पात्र के रूप में कार्य करता है ।
इन्सान की मनोस्थिति पर नियन्त्रण रखने की चर्चा करते हुए श्री मौजी ने कहा कि ब्रहमज्ञान की प्राप्ति के बाद सन्तजनों का संग करने से इन्सान को यह स्पष्ट हो जाता है कि मैं कौन हूं, मेरा मानुष जन्म का उद्देश्य क्या है, मैं कहां से आया हूं और मुझे कहां जाना है । इससे धीरे-धीरे उसके व्ययवहार में भी साकारात्मक परिवर्तन होने लगता है जिस कारण जीवन में आने वाले सुख-दुख, उतराईयां-चढ़ाईयां, यश-अपयश का उसकी मनोस्थिति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, इसके अतिरिक्त वह वसुधैव कुटुम्बकम वाली विचाराधारा को भी अपनाने लगता है अर्थात वह जात-पात, खान-पान, भाषा आदि तथा भ्रम-भुलेखों से उपर उठ कर सारा संसार एक परिवार मान कर जीवन जीने लगता है ।
इससे पूर्व इस सत्संग समारोह में उपस्थित अनेक वक्ताओं ने अपने स्पीच, गीत, कविता, आदि के रूप में सत्गुरू माता सुदीक्षा जी महाराज द्वारा दी जा रही शिक्षाओं को अनेक भाषाओं का सहारा लेते हुए व्यक्त किया ।
इस अवसर पर यहां के संयोजक श्री नवनीत पाठक तथा चण्डीगढ़ ज़ोन के ज़ोनल इन्चार्ज श्री ओ. पी. निरंकारी ने श्री मौजी जी का देहली से पधारने पर धन्यवाद किया