Chandigarh
गुप्त राष्ट्रकवि केवल इसलिए नहीं हुए कि देश की आजादी के पहले राष्ट्रीयता की भावना से लिखते रहे। वह देश के कवि बने क्योंकि वह हमारी चेतना, हमारी बातचीत, हमारे आंदोलनों की भाषा बन गए।
महात्मा गांधी जी ने मैथिलीशरण गुप्त जी को राष्ट्रकवि का नाम दिया था, इस नाम देने की वजह बहुत सी हैं जो उनकी बानगी की यथेष्ठ बनाती हैं।
अपने साहित्य अपने काव्य से नीरस मनव जीवन में नव चेतना जागृत करने वाले हजारी प्रसाद द्विवेदी के एकलव्य मैथिलीशरण गुप्त आज ही के दिवस ईश्वर तत्व में विलीन हुए थे।
“हो जावे अज्ञान-तिमिर का एक बार ही नाश
और यहाँ घर घर में फिर से फैले वही प्रकाश।
जियें सब नूतन जीवन से।
भजो भारत को तन-मन से
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी की कविताएं सदैव मातृभूमि की सेवा के लिए प्रेरित करती रहेंगी।वे खड़ी बोली के राष्ट्रकवि थे मैथिलीशरण गुप्त
मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त 1986 में भारत के उत्तरप्रदेश के जासी में चिरंगाव में हुआ था| बचपन से ही उन्हें हिंदी कविताओं और साहित्य संदर्ब में रूचि थी| उनके पिता जी का नाम सेठ रामचरण कनकने था और माता का नाम कौशिल्या बाई था| आज के इस पोस्ट में हम आपको मैथिलीशरण गुप्त की कविताए, मैथिलीशरण गुप्त की कविता की विषयवस्तु, मैथिलीशरण गुप्त की काव्यगत विशेषताएँ, मैथिलीशरण गुप्त की कविता यशोधरा, मैथिलीशरण गुप्त की काव्य भाषा पर विचार, मैथिलीशरण गुप्त साकेत इन मराठी, हिंदी, इंग्लिश, बांग्ला, गुजराती, तमिल, तेलगु, आदि की जानकारी देंगे जिसे आप अपने स्कूल के निबंध प्रतियोगिता, कार्यक्रम या भाषण प्रतियोगिता में प्रयोग कर सकते है|
मैथिलीशरण गुप्त जी स्वभाव से ही लोकसंग्रही कवि थे और अपने युग की समस्याओं के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील रहे। उनका काव्य एक ओर वैष्णव भावना से परिपोषित था, तो साथ ही जागरण व सुधार युग की राष्ट्रीय नैतिक चेतना से अनुप्राणित भी था। लाला लाजपतराय, बाल गंगाधर तिलक, विपिनचंद्र पाल, गणेश शंकर विद्यार्थी और मदनमोहन मालवीय उनके आदर्श रहे। महात्मा गांधी के भारतीय राजनीतिक जीवन में आने से पूर्व ही गुप्त का युवा मन गरम दल और तत्कालीन क्रान्तिकारी विचारधारा से प्रभावित हो चुका था। ‘अनघ’ से पूर्व की रचनाओं में, विशेषकर जयद्रथ वध और भारत भारती में कवि का क्रान्तिकारी स्वर सुनाई पड़ता है। बाद में महात्मा गांधी, राजेन्द्र प्रसाद, जवाहर लाल नेहरू और विनोबा भावे के सम्पर्क में आने के कारण वह गांधीवाद के व्यावहारिक पक्ष और सुधारवादी आंदोलनों के समर्थक बने। 1936 में गांधी ने ही उन्हें मैथिली काव्य–मान ग्रन्थ भेंट करते हुए राष्ट्रकवि का सम्बोधन दिया। महावीर प्रसाद द्विवेदी के संसर्ग से गुप्तजी की काव्य–कला में निखार आया और उनकी रचनाएँ ‘सरस्वती’ में निरन्तर प्रकाशित होती रहीं। 1909 में उनका पहला काव्य जयद्रथ-वध आया। जयद्रथ-वध की लोकप्रियता ने उन्हें लेखन और प्रकाशन की प्रेरणा दी। 59 वर्षों में गुप्त जी ने गद्य, पद्य, नाटक, मौलिक तथा अनूदित सब मिलाकर, हिन्दी को लगभग 74 रचनाएँ प्रदान की हैं। जिनमें दो महाकाव्य, 20 खंड काव्य, 17 गीतिकाव्य, चार नाटक और गीतिनाट्य हैं।
मैथिलीशरण गुप्त की राष्ट्रीय भावना उच्च कोटि की थी | उनका संपूर्ण साहित्य भारत की सामूहिक चेतना का प्रतिनिधित्व करता है | उन्होंने भारत को एक इकाई के रूप में देखा | उनकी दृष्टि में हिंदुओं का अर्थ है – हिंदुस्तान में रहने वाला व भारत माता के चरणों में सर्वस्व समर्पित करने वाला | गुप्त जी ने स्पष्ट शब्दों में गौरव के साथ इस बात की घोषणा की है –
“हम हैं हिंदू की संतान
जिए हमारा हिंदुस्तान |”
गुप्त जी अपने साहित्य में साहित्य-कर्म के वास्तविक उद्देश्य को प्रकट करते हुए लिखते हैं —
“केवल मनोरंजन न कवि का कर्म होना चाहिए |
उसमें उचित उपदेश का भी मर्म होना चाहिए |”
मैथिलीशरण गुप्त की राष्ट्रीय भावना में सामाजिक सरोकार भी सम्मिलित हैं | वे सभी सामाजिक रूढ़ियों को दूर करके एक स्वस्थ समाज का निर्माण करना चाहते हैं | उनका मानना है कि आपसी वैमनस्य को दूर करके ही राष्ट्रीय एकता के लक्ष्य को पाया जा सकता है |
साहित्यिक जगत् में विशेषतः विद्यार्थियों को इनकी कविताओं को अवश्य देखना चाहिए और इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए, देश को कविताओं से जोड़ा था गुप्त जी ने, और कविताओं का अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बनाया था, अस्तु, गुप्त जी का काव्य साहित्य ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण साहित्य राष्ट्र हित के लिए सदैव प्रेरक रहा है।