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चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव को लेकर बड़ी खबर, चुनाव चिन्हों पर उठा सवाल

चंडीगढ़( प्रवेश फरण्ड )

24 दिसंबर को चंडीगढ़ नगर निगम के छठे आम चुनाव हेतु मतदान करवाया जाएगा जबकि इसके तीन दिन बाद 27 दिसम्बर को मतगणना होगी। इसी बीच आगामी 27 नवंबर से 4 दिसम्बर तक उम्मीदवारों द्वारा नामांकन भरे जा सकेंगे जिनकी जांच 6 दिसम्बर को होगी एवं 9 दिसम्बर तक उम्मीदवारों द्वारा नामांकन वापिस लिए जा सकेंगे। बहरहाल, इसी बीच पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने बताया कि बीते 25 वर्षों से अर्थात दिसंबर, 1996 से, जब स्थानीय नगर निगम की वर्ष मई, 1994 में स्थापना के बाद पहले चुनाव करवाए गए थे, तब से लेकर पिछले चुनावों अर्थात दिसंबर, 2016 तक दिल्ली और यूटी चंडीगढ़ के लिए गठित संयुक्त राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा चंडीगढ़ नगर निगम के कुल पांच आम चुनाव करवाए गए हैं, जिन सब में चुनावो में मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय पार्टियों और क्षेत्रीय दलों द्वारा विभिन्न वार्डों से उतारे गए उम्मीदवारों को उनकी पार्टी का आरक्षित चुनाव चिन्ह जैसे कांग्रेस का हाथ (पंजा), भाजपा का कमल का फूल, बसपा का हाथी, शिरोमणि अकाली दल का तराजू आदि आबंटित किये जाते रहे हैं।

 

हेमंत ने चंडीगढ़ नगर निगम के चुनावो में राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों को पार्टी के आरक्षित चुनाव-चिन्ह आबंटित करने पर कानूनी प्रश्न उठाया है. उन्होंने बताया कि इस सम्बन्ध में चंडीगढ़ नगर निगम पर लागू कानून अर्थात पंजाब नगर निगम अधिनियम (चंडीगढ़ में विस्तार ) कानून, 1994 जिसे 24 मई, 1994 से लागू किया गया, उसमें चंडीगढ़ नगर निगम के चुनावों में राजनीतिक पार्टियों/दलों और उनके आरक्षित चुनाव-चिन्ह उम्मीदवारों के बारे कोई प्रावधान नहीं है। हालांकि यूटी चंडीगढ़ प्रशासन के स्थानीय स्वशासन विभाग द्वारा द्वारा वर्ष 1995 में बनाये गए चंडीगढ़ नगर निगम (पार्षदों का निर्वाचन) नियमों, 1995 के नियम संख्या 13 में नगर निगम चुनावों में मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय दलों और क्षेत्रीय दलों हेतु भारतीय चुनाव आयोग द्वारा आरक्षित चुनाव चिन्हों के प्रयोग करने का उल्लेख है परन्तु हेमंत का कानूनी मत है कि मात्र उक्त नियम में उल्लेख से राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्हों पर चंडीगढ़ नगर निगम के चुनाव करवाने को कानूनी मान्यता नहीं मिलती जब तक कि उपरोक्त 1994 कानून में इस संबंध में स्पष्ट प्रावधान न कर दिया गया जाए। अब प्रश्न यह उठता है कि कानूनी प्रावधान न होने के बावजूद चंडीगढ़ नगर निगम के चुनावों में राजनीतिक दलों द्वारा उतारे गए उम्मीदवारों को पार्टी चुनाव चिन्ह क्यों और कैसे आबंटित किये जाते हैं? हेमंत ने बताया कि ऐसा समय समय पर यूटी चंडीगढ़ के राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा जारी चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव चिन्ह (आरक्षण एवं आबंटन) आदेश के द्वारा ऐसा किया जाता रहा है.

इसी प्रकार का ताजा आदेश गत 10 नवंबर, 2021 को आयोग द्वारा जारी किया गया है जिसमें निर्दलियों के तौर पर चुनाव लडऩे वाले उम्मीदवारों को आबंटित किये जाने वाले फ्री सिम्बल्स ( मुक्त चुनाव चिन्ह) की सूची के साथ साथ ही राष्ट्रीय पार्टियों और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के आरक्षित चुनाव चिन्हो के आबंटन करने का भी उल्लेख है। हेमंत ने बताया कि हालांकि भारत के संविधान के अनुच्छेद 243 ज़ेड.ए. (1) में राज्य निर्वाचन आयोग के पास प्रदेश/यूटी में नगर निकाय चुनावो के अधीक्षण, निदेशन एवं नियंत्रण का पूर्ण अधिकार है परन्तु इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि सम्बंधित नगर निकाय कानून में प्रावधान/उल्लेख न होने के बावजूद आयोग द्वारा चुनावों में राजनीतिक दलों के आरक्षित चुनाव चिन्हों को भी आबंटित करने का आदेश जारी कर दिया जाए. संविधान के उक्त अनुच्छेद 243 ज़ेड.ए क (2) में नगर निकायों चुनावों संबंधी सभी प्रावधान बनाने का अधिकार उपयुक्त विधानमंडल (चंडीगढ़ नगर निगम के विषय में भारत की संसद) को है। इस प्रकार संसद द्वारा इस संबंध में उपरोक्त 1994 कानून में उपयुक्त संशोधन करने के पश्चात ही ऐसा संभव हो सकता है। हेमंत ने बताया कि इसी वर्ष मार्च में पडोसी राज्य हिमाचल प्रदेश द्वारा राज्य के नगर निगम कानून, 1994 में राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्हो पर चुनाव करवाने सम्बन्धी स्पष्ट कानूनी प्रावधान डालने के बाद ही वहां पर मंडी, धर्मशाला, सोलन और पालमपुर नगर निगमों में पार्टियों के चुनाव-चिन्हों पर चुनाव करवाए जा सके थे.

अगर मात्र निर्वाचन नियमों में राज्य सरकार द्वारा उल्लेख करने से या हिमाचल प्रदेश के राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा जारी चुनाव चिन्हों संबंधी आदेश से ही ऐसा करना कानून संभव होता, जैसा चंडीगढ़ में बीते 25 वर्षों से होता रहा है, तो हिमाचल सरकार को विधानसभा से उपरोक्त कानूनी संशोधन करवाने की क्या आवश्यकता थी? हेमंत ने राज्य निर्वाचन आयोग, चंडीगढ़, एस.के.श्रीवास्तव, यूटी के प्रशासक, उनके एडवाइजर, चंडीगढ़ के गृह एवं स्थानीय स्वशासन विभाग के सचिव एवं अन्य को इस संबंध में कानूनी नोटिस कम प्रतिवेदन भी भेजा है हालांकि उनकी ओर से अब तक कोई जवाब नहीं दिया गया है

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