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हरियाणवी के पुरोधा अनूप लाठर की पुस्तक का विश्व पुस्तक मेले में विमोचन

  • -पुस्तक “काल और ताल” में सहेजा गया है 150 गीतों के साथ उनकी धुनों को
  •  कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में 30 वर्ष युवा एवं सांस्कृतिक विभाग के निदेशक रहे हैं अनूप लाठर
  •  रत्नावली महोत्सव के माध्यम से की हरियाणवी में अनेकों नई विधाओं की खोज

चंडीगढ़/ कुरुक्षेत्र। हरियाणवी संस्कृति के पुरोधा और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के युवा एवं सांस्कृतिक विभाग के पूर्व निदेशक अनूप लाठर की पुस्तक “काल और ताल” का विमोचन दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह द्वारा प्रगति मैदान में लगे नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले में किया गया। इस पुस्तक में 150 गीतों के साथ उनकी धुनों को भी सहेजा गया है। गौरतलब है कि अनूप लाठर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में 30 वर्ष तक युवा एवं सांस्कृतिक विभाग के निदेशक रहे हैं। यहां पर उन्होंने रत्नावली समारोह की शुरुआत की, जो आज हरियाणवी संस्कृति का महाकुंभ माना जाता है। उन्होने इस महोत्सव के माध्यम से की हरियाणवी आर्केस्ट्रा और हरियाणवी पॉप सॉन्ग सहित अनेकों नई विधाओं की खोज की।

विश्व पुस्तक मेले में प्रकाशक “किताब वाले” के स्टाल पर आयोजित विमोचन समारोह को संबोधित करते हुए कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि संस्कृति को सहेजना बहुत मुश्किल काम है। यह पुस्तक एक धरोहर है, जिसे सहेजने में अनूप लाठर, एसके सलूजा और प्रकाशक प्रशांत जैन ने जो सराहनीय काम किया वह काबिले तारीफ है। उन्होने कहा कि संस्कृति को सहेजने के लिए किताबों से बढ़ कर कोई सहारा नहीं हो सकता।

उन्होने कहा कि उत्तर-पश्चिमी भारत ने शादियों से इतने आक्रमणों को झेला कि यहाँ का अधिकतर इतिहास विलुप्त सा हो गया। ऐसे में जो थोड़ी बहुत संस्कृति बची है उसे अनूप लाठर और एसके सलूजा ने इस पुस्तक के माध्यम से सहेज कर बड़ा काम किया है। उन्होने कहा कि इतिहास को सहेजना बड़ी बात है, लेकिन पुस्तकों में विचारों को सहेजने से पहले इस बात का ध्यान रखना भी जरूरी है कि विचार खतरनाक न हों। इसलिए पुस्तकें सही लिखी जानी चाहियें। उन्होंने कहा कि लेखकों ने इस पुस्तक में हरियाणवी लोक संस्कृति को बहुत ही सहज और सटीक तरीके से सहेजने का काम किया है। इसमें जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी संस्कारों और अवसरों को पर प्रचलित गीतों को सहेजने का काम किया गया है। यही नहीं संगीत की बारीकियों को समझने के लिए इन गीतों की नोटेशन भी साथ साथ दी गई है। कुलपति ने कहा कि यह कार्य आने वाली पीढ़ियों के लिए बहुत ही सहायक होगा। आने वाले 100-150 सालों बाद बच्चे इस पुस्तक के माधायम से ही समझेंगे कि इन गीतों को कैसे गाया जाता था। इसके साथ ही उन्होने कहा कि पुस्तकें राष्ट्र की संस्कृति और आत्मा को सहेजने का काम करती है, इसलिए पुस्तकें पढ़ने की आदत डालें तभी कोई लिख पाएगा। समारोह के आरंभ में पुस्तक “काल और ताल” के लेखक अनूप लाठर ने आए हुए सभी अतिथियों का स्वागत किया। इस अवर पर उन्होने पुस्तक की पृष्ठभूमि को लेकर विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि बहुत से प्रदेशों की लोक संस्कृति पर बहुत सा कम हुआ है, लेकिन हरियाणा में ऐसा नहीं हुआ। उन्होने बताया कि करीब 30 वर्ष पहले इस पुस्तक को लिखने का ख्याल आया था। फिर लोकगीतों को संकलित करने का काम किया गया। उन गीतों के गायन को लेकर संगीत के ज्ञाता प्रो. एसके सलूजा ने नोटेशन तैयार किए। इस तरह से 150 गीतों का यह संग्रह तैयार हो पाया। उन्होने कहा कि आने वाली पीढ़ियों के लिए यह पुस्तक बहुत बड़ी दें साबित होगी।

इस अवसर पर दक्षिणी दिल्ली परिसर के निदेशक प्रो. प्रकाश सिंह और अंबेडकर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. अनु सिंह लाठर सहित कई गणमान्य व्यक्तियों ने संबोधित किया। पुस्तक के प्रकाशक प्रशांत जैन ने समारोह के अंत में सभी का आभार ज्ञापित किया। विमोचन अवसर पर कुलपति प्रो. योगेश सिंह सहित पुस्तक के लेखक अनूप लाठर, एवं प्रो. एसके सलूजा, दिल्ली विश्वविद्यालय दक्षिणी दिल्ली परिसर के निदेशक प्रो. प्रकाश सिंह, अंबेडकर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. अनु सिंह लाठर, पुस्तक के प्रकाशक प्रशांत जैन, डीयू रजिस्ट्रार डॉ. विकास गुप्ता सहित अनेकों गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

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